#रावण ने #बाली से दोस्ती का वास्ता देकर #अंगद को अपनी सेना का #सेनापति बन अपनी तरफ से लड़ने का न्योता दिया था... तो अंगद ने क्या कहा था ज़रा #ध्यान से #पढ़िए.....
मैं यह #सेवा करता - परंतु मुझमे इतनी योग्यता कहाँ?
#लंका का सेनाध्यक्ष बनूँ, यह बुद्धि और वीरता कहाँ?
सेनापति अगर चाहते हो तो #रामादल में फ़ाज़िल है।
दो चार नहीं, #सैंकड़ो वहां सेनापति बनने के काबिल हैं।।
पर शायद ही स्वीकार करे - कोई इस #मैले गहने को ..!
नारियां #चुराई जाए जहाँ, ऐसे कुराज्य में रहने को...!
अन्यथा - एक #विभीषण तो इस सेवा को आ सकता है।
सेनापति क्या, तुम चाहो तो वह #राज भी चला सकता है।।
अन्यथा, संदेशा है उसका इस #लंकाधीश्वर रावण को।
सारी लंका में एक वही -- बस शेष रहेगा #तर्पण को।।
इसलिए #त्यागकर वैर-भाव, उज्जवल मन का दर्पण करिए।
कीजिए संधि #रघुनायक से - सीता उनको अर्पण करिए।।
यह खूब समझ लीजिए, #कीश लंका में पांव धर चुके हैं।
"निश्चर से हीन करूँगा #महि" - यह प्रण रघुनंदन कर चुके है।।
साभार - श्री #राधेश्याम रामायण
